जबलपुर (बुढ़ागर) जिम्मेदार
अधिकारियों की लापरवाही और चंद असामाजिक और लालची तत्वों के लालच के चलते एक और
ऐतिहासिक धरोहर धीरे-धीरे अपना वजूद खो चुका है। जी हां बात करते हैं बुढ़ागर
स्थित बुढ़ान सागर तालाब की जहां की स्थिति बहुत ही दयनीय हो चुकी है। 17 वी शताब्दी में क्षेत्र के
ही एक धनाढ्य व्यक्ति को बुढा़न जी के द्वारा लगभग 700 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में खुदवाया गया यह
बुढा़न सागर तालाब सदियों से लोगों की गुजर बसर का एक बड़ा साधन रहा है।तालाब के
चारों तरफ बर्मन समाज की बस्तियां हैं और इन बस्तियों में रहने वाले सभी लोगों का
भरण पोषण और उनकी तमाम आवश्यकताओं की पूर्ति इसी तालाब के माध्यम से होती है। सभी
साल में एक बार सिंगाड़े की खेती करते हैं और उसकी उपज से होने वाली आय से अपना
जीवन यापन करते हैं। साथ ही मछली पालन का कार्य भी करते हैं। बुढा़न सागर तालाब
विगत 3-4 वर्षों से उपयुक्त वर्षा ना
होने के कारण अपनी जलराशि को धीरे-धीरे करके होता चला गया।
इसका फायदा चंद लालची
और असामाजिक तत्वों ने कुछ इस प्रकार उठाया कि उस तालाब के चारों तरफ से उसे घेरने
की कोशिश करने लगे। कुछ बहाना इस प्रकार था कि ओवरफ्लो बनाने के बहाने उस तालाब का
सारा पानी बाहर कर दिया जाता ताकि उस तालाब में पानी इकट्ठा ना होने पाए धीरे-धीरे
तालाब में सिंघाड़े की खेती करना मुश्किल हो गया मछली पालन तो बहुत दूर की बात है।
इसके बाद भूमाफिया की नजर उस क्षेत्र पर पड़ी और उन्होंने तालाब के किनारे से कई
जगहों से पूरना शुरू किया। वहां पर कछ क्षेत्रों में प्लाटिंग भी वह लोग कर चुके
हैं। इन तमाम समस्याओं से आहत क्षेत्रीय भ्रमण समाज के लोगों द्वारा विगत जनसुनवाई
के दिन भी कलेक्टर महोदय से गुहार लगाई गई थी। आज जब मीडिया की टीम मौके पर खबर को
बनाने के लिए पहुंची। तो सभी क्षेत्रीय लोगों ने तालाब के बीचों बीच खड़े होकर
अपना साक्षात्कार दिया और अपनी व्यथा को व्यक्त किया। तालाब के बीचो-बीच खड़े होने
का औचित्य था कि तालाब में पानी नाम मात्र ही बचा है। तालाब के भीतर की आलम यह है
कि वहां पर गाड़ियां चलती हैं। मोटरसाइकिल चलती हैं। बच्चे क्रिकेट खेलते हैं और
बच्चों के जो बुजुर्ग हैं वह सिर पकड़ कर रोते हैं क्योंकि उनकी सदियों पुरानी
रोजी-रोटी का एकमात्र साधन यह तालाब था जो धीरे-धीरे सूख गया।
आज इस स्थिति में
पहुंच गया कि उन लोगों के सामने रोजी रोटी
का संकट पैदा हो गया। बताया यह भी गया है कि इस क्षेत्र में पांच सौ परिवारों के
सारे खर्चे इस तालाब से चलते थे। लेकिन उन तमाम सभी किसानों ने विगत 4 वर्षों से कर्जा लेकर
सिंघाड़े की खेती की और हर बार उनकी खेती सूखती चली गई। दो-दो तीन-तीन लाख रूपय का
कर्ज एक परिवार के ऊपर है। जो उनके सामने मुंह बाए खड़ा है। साथ ही नियमित रोज़ी
रोटी का संकट भी उनके सामने खड़ा हुआ है। बड़े ही दुख की बात है कि इस पूरे
घटनाक्रम पर प्रशासनिक अमला कुछ करता हुआ नजर नहीं आ रहा है। लोगों की चिंताओं से
बाखबर होने के बावजूद प्रशासनिक अमले ने इस विषय में कुछ उल्लेखनीय करना जरूरी
नहीं समझा। अतः सभी क्षेत्रीय जनों ने सरकार से यह अपील की है कि जिस प्रकार एक
खेती करने वाले किसान को उसकी फसल का मुआवजा दिया जाता है फसल के खराब होने पर।
उसकी फसल का एक उचित समर्थन मूल्य दिया जाता है, साथ ही जो सारी सुविधाएं सरकार किसानों को देती
है। वही सारी सुविधाएं बर्मन समाज को भी मिलनी चाहिए क्योंकि वह भी सिंघाड़े की
खेती करते हैं। मत्स्यपालन का कार्य भी करते हैं। इस वक्त इन तमाम लोगों पर ना
केवल कर्जे का बोर्ड लगा है बल्कि बड़े होते बच्चों की पढ़ाई लिखाई उनके लालन-पालन
के साथ उनकी शादी ब्याह के खर्च की भी
चिंता है। इन तमाम मांगों को लेकर उन सभी
किसान उन सभी क्षेत्रीय परिवारों का रोष भी जारी है उनकी मांग भी जारी है।
"तालाब के कुछ दूर भीतर एक
नाला बनाया गया है जो यह सोचकर बनाया गया है कि इससे तालाब का सारा पानी बाहर चला
जाएगा और धीरे-धीरे तालाब सूख जाएगा ताकि आने वाले वक्त में उस भूमि पर प्लॉटिंग
करके उसे ऊंचे दामों पर बेच कर के मुनाफा कमाया जा सके, यदि शासन निशा और जल्द ही
ध्यान नहीं दिया और पीड़ितों को उचित मुआवजा नहीं दिया तो मांग को हम एक आंदोलन की
शक्ल देंगे और तब तक संघर्ष करेंगे जब तक पीड़ितों को न्याय नहीं मिल जाता"।
हरदयाल बर्मन
"शासन प्रशासन और
जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा के चलते उड़ान सागर तालाब जो कि एक ऐतिहासिक धरोहर है
अब सूख चुका है और इसका लाभ से लोगों का निर्वहन नहीं हो पा रहा है इन तमाम
समस्याओं से पीड़ित लोग आज मजबूर होकर अपनी आवाज उठा रहे हैं और शासन-प्रशासन से
अपेक्षा है कि वह जल्द से जल्द इन लोगों की समस्याओं को सुनेगा और उनका निराकरण
करेगा"।
जुबैर शेक न्यूज़ विज़न की खास रिपोर्ट
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