डिफाल्टर प्रमुख विभाग घोषित होने की स्तिथि में, है वाणिज्यिक कर विभाग
वाणिज्य
कर विभाग के इतिहास में भूचाल लाने वाला यह उपायुक्त पांडे उर्फ
ओ पी पांडे ANTI-EVASION ब्यूरो
जबलपुर में पदस्थ है, जिसने
रातों रात वाणिज्यिक कर के इतिहास में एक नया काम कर दिया था, जिसको
लेकर पढ़े-लिखे अधिकारी भी शर्मिंदगी महसूस करने लगे थे, मजे की बात तो यह है पूरी जानकारी होने के बाद
भी इस विभाग के आयुक्त पवन कुमार शर्मा ने किसी प्रकार का कोई एक्शन नहीं
लिया, यह वही उपायुक्त है, जिसने रातों-रात अधिकारिक ग्रुप में 8-10 ब्लू
फिल्म भेज दीजिए, यह अपने आप में घिनौनी वीडियो उस ग्रुप में भेजी थी, जिसमें कई
वरिष्ठ महिला अधिकारी भी ग्रुप मेंबर बावजूद इस घिनौने अपराध के इस आरोपी उपायुक्त
को इसी पद पर बनकर या बने रहकर काम करने का सुसम्मान अवसर प्राप्त है, आप अंदाजा
लगा सकते हैं, किस विभाग में भ्रष्टाचार का स्तर क्या हो सकता है, इस भाग में इस
तरह के उपायुक्त घिनौनी हरकतों के बावजूद सीना चौड़ा करके मार्केट में घूमते हैं,
इस तरह की बेशर्मी को समर्थन कहां से मिलता है ? , निसंदेह कहीं ना कहीं वरिष्ठ
अधिकारी भी इस पूरे कर्मकांड में मिलीभगत के साथ अपना पूरा सहयोग देते रहते हैं.
वाणिज्य
कर विभाग के इतिहास का काला दिवस उस दिन मनाया जाएगा, जिस दिन ईमानदारी का चोला ओढ़कर किसी 3RD क्लास अयोग्य भ्रष्ट अधिकारी को पदोन्नत कर के उपायुक्त के पद पर पदस्थ
करने का घिनौना अपराध, वाणिज्य कर विभाग के वरिष्ठ अधिकारी आयुक्त और प्रमुख सचिव
ने किया था, सारी
जानकारियों के बावजूद वर्ष 2003 से लंबित एक आरोप पत्र के
बावजूद इन अधिकारियों के द्वारा अपने अधीनस्थ पदस्थ ओम
प्रकाश वर्मा को जबलपुर के अपील कार्यालय में बतौर उपायुक्त पदस्थ किया गया, जहां पर हराम की कमाई के संपूर्ण संसाधनों से युक्त करते हुए, सम्भवत: इसे भ्रष्टाचार की काली कमाई एकत्रित करने के
लिए नियुक्त किया गया था, पुराना काला चिट्ठा जो इस के वाणिज्य कर अधिकारी रहते
हुए ईओडब्ल्यू में जांच का पात्र बना था, जिस पर इस भ्रष्ट अधिकारी को 5 साल की सश्रम कारावास की सजा उज्जैन के स्पेशल न्यायाधीश श्रीमती आशिता
श्रीवास्तव के द्वारा और तोहफे में दी
गई और इसी के साथ वाणिज्य कर विभाग के इतिहास का घिनौना चेहरा सामने आ सका, कि अभी
भी इस तरह की कार्यशैली वरिष्ठ अधिकारियों के साथ निरंतर बरती जा रही है
और इसी के समर्थन में
देखा जाए एक महान भ्रष्टाचार की प्रत्यक्ष मूर्ति के रूप में पदस्थ हप्सी भ्रष्ट उपायुक्त नारायण मिश्र जबलपुर के संभाग में पदस्थ है, अभी भी निरंतर कार्यालयीन समय के
उपरांत अवैध रूप से विभाग का संचालन करते हुए विभाग में अपने कमरे में रात को 2:00
बजे तक उपस्थित रहता है, एक स्ट्रांग रूम
बनाया गया है, जिसमें कि किसी के आने जाने की कोई परमिशन
नहीं रहती है, सारी रंगरेलिया उसी में मनाई जाती हैं,
शराबखोरी की जाती है, और लेन-देन से जुड़े सभी काले काम वही किए जाते हैं, रिटायर
होने के बाद भी कई चेले चपाटी इसके वहीं पर दो -₹400 के चक्कर में मुंह
मारते हुए नजर आते हैं, जिनमें एक के.पी. चतुर्वेदी मुख्य रूप से और खासकर चेला
गणेश कुमार तिवारी, हमेशा उपस्थित रहता है, आजकल दलाली के कामों में रिटायर्ड इन
दोनों कर्मचारियों का बड़ा बोलबाला है, पहले भी इस उपायुक्त के काले कारनामों के
चिट्ठे न्यूज़ के माध्यम से उजागर किए गए हैं, परंतु विभाग में लंबे समय से
बेशर्मी की प्रथा को निरंतर लागू रखते हुए समर्थन पूर्वक सारे काम किए जाते रहे
हैं, जिसके चलते आज सारा मानव समाज शर्मिंदा है, और एक बार फिर मजबूरन इस तरह के
भ्रष्टाचार को झेलने के लिए असहाय है, जरूरत
है उस किसी नक्सली की जो इस तरह के
भ्रष्टाचार को कहीं जंगल में खदेड़ करके के
निपटा सके, क्योंकि अभी तक की दायर शिकायतों पर किसी प्रकार की कानूनी प्रक्रिया
का पालन ना हुआ है, ना होने की संभावना है ,तलवे चाटो और बने रहो की तरकीब इस
विभाग में कानून से ऊपर है
इन सभी भ्रष्ट
अधिकारियों के द्वारा किए गए भ्रष्टाचार पर सूचना अधिकार के तहत आवेदन भ्रष्ट कारणों पर लगभग निरस्त हो चुके हैं, और अभी उच्च न्यायालय में और लोक सूचना आयुक्त कार्यालय में
लंबित है, जिस पर अगर जानकारी प्राप्त हो जाती है, तो इनके किए गए कारनामों को
बेनकाब किया जा सकता है, और इन्हें पूरे मानव समाज में अर्धनग्न अवस्था में
प्रकाशित किया जा सकेगा, कि इनके द्वारा क्या क्या कारनामे किए गए, और इनके द्वारा किये गए भ्रष्ट कार्यों की हाइट क्या है, वर्तमान स्थिति के अनुसार अधिकारों भद्र दुरुपयोग किया जा रहे हैं, प्राप्त अधिकारों पर और पदीय दुरुपयोग पर किसी प्रकार की कोई समीक्षा वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा नहीं की
जाती है, ना ही उनके द्वारा शिकायतों को सुना जाता है, वर्तमान में आवेदन लंबित है, उचित निराकरण आते ही इन्हें बेनकाब करने का प्रयास किया जाएगा, आने वाले समय में दो
महिला अधिकारी भी हैं, जिन पर कार्यवाही जारी है, सबूत हाथ लगते ही उनका भी एक असली
चेहरा समाज में लाने का पूरा काम किया जाएगा.
भ्रष्टाचार के
बड़े-बड़े दिग्गजों को छोड़कर, छोटी मोटी चुहिया मार कर,
अपनी भ्रष्टाचार छवि को ईमानदारी का नकली चोला उड़ने का काम करने वाले वरिष्ठ जनों
को फिलहाल वरिष्ठ भ्रष्ट अधिकारियों की कृपा प्राप्त है, और अज्ञात कारणों पर जांच
एजेंसी के हत्थे चढ़े इस रीडर को यह समझ
में नहीं आता, कि आखिर ऐसा कौन सा प्रकरण लंबित था विभाग में, जिसके तहत इस पर
रिश्वत के आरोप लगाये गए और उन्हें आरोपी बनाया गया, किस सेक्शन में कौनसा प्रकरण
लंबित था, और किस अधिकारी के कार्य क्षेत्र अंतर्गत, वह प्रकरण निराकरण हेतु
नियुक्त किया गया था, क्या वह प्रकरण, उक्त अवधि के दौरान निराकरण का पात्रता भी
कि नहीं क्या कोई जानकारी कार्य क्षेत्र अंतर्गत पदस्थ अधिकारी को नहीं थी, परंतु
फिलहाल इस डिपार्टमेंट के अंदर लंबी रकम कमाने वाले मोटे भ्रष्ट अधिकारियों को
बख्श दिया जाता है और छोटी-मोटी बलि चढ़ा कर बाकियों का नाम दूध से धो दिया जाता
है
A & E
Accountant general
महालेखाकार को भी बनाते है मूर्ख,
यह
कुछ बहुत बड़े आश्चर्य का विषय नहीं है कि वाणिज्य कर के यह डिफाल्टर उपायुक्त
विभाग स्तर पर होने वाली राजस्व वसूली के असली आंकड़े छुपा लेते हैं, और फर्जी
आंकड़े और अनुमानित आंकड़े और मिल चुके टारगेट के परिपेक्ष में उटपटांग अनर्गल
अधिक आंकड़े अकाउंटेंट जनरल कार्यालय महालेखाकार मध्यप्रदेश को प्रस्तुत करते हैं,
निर्धारित हो चुके प्रकरणों की सूची भी फर्जी होती है, इस पूरे कार्यक्रम में
विभागीय स्तर पर अपनायी जाने वाली कार्यप्रणाली पर किसी प्रकार से कोई अमल नहीं
किया जाता, विभागीय स्तर पर कार्यों को
करने हेतु वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा जो अधिसूचनाएं और दिशा निर्देश जारी किए
जाते हैं, उनका पालन भी नहीं किया जाता, सभी तर्कों को तार तार करते हुए यह सभी
डिफाल्टर उपायुक्त अपने मनमुताबिक कार्य करते हैं, इस संबंध में कार्यालय
महालेखाकार को कार्यवाही हेतु पत्र लिखा गया है, जिसमें डिफाल्टर उपायुक्त नारायण
मिश्र वाणिज्य कर विभाग संभाग क्रमांक 1 जबलपुर के द्वारा की जा चुकी अनियमितताओं
का पूरा वृतांत प्रस्तुत किया गया है ,परंतु उनके द्वारा किसी प्रकार की कोई
कार्यवाही अभी तक शुरू नहीं की गई है, इसी प्रकार पदीय दुरुपयोग में एक डिफॉल्टर
उपायुक्त ओम प्रकाश वर्मा जो अभी जेल की सलाखों के पीछे है, अगर कार्यालय
महालेखाकार से ऑडिट करने आए अधिकारी के विरुद्ध कोई कड़ी कार्यवाही शुरू हो जाए तब
जाकर के डिफाल्टर उपायुक्त नारायण मिश्र के विरुद्ध आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ में
दायर किया जा सकेगा और उसके विरुद्ध राजस्व की क्षति कारित करने का जो महा पाप
किया गया है, उस पर विभिन्न भ्रष्टाचार की धाराओं पर कार्यवाही की जा सकेगी और
निश्चित रूप से यह भ्रष्ट आरोपी अधिकारी/श्वान जेल की सलाखों के पीछे समय काटता नजर आएगा.
मुख्यमंत्री की इस योजना की तो ऐसी भद्र बेज्जती करके रखी है इन डिफाल्टर उपायुक्तों ने कि अगर उनकी समीक्षा की जाए तो करने वाला आदमी बेहोश हो जाए गायब होने वाली शिकायतों का निराकरण L1 अधिकारी से लेकर L2 अधिकारी तक पहुंचते ही बंद कर दिया जाता है जो शिकायत दर्ज होती है निराकरण से उसका दूर-दूर तक हजारों किलोमीटर तक कोई सरोकार नहीं रहता L4 अधिकारी कौन है कहां बैठता है क्या करता है किसी को नहीं मालूम ना उसका कभी कोई नंबर अपडेट होता है कि इस संबंध में कोई उस अधिकारी से संपर्क भी नहीं कर सकता क्योंकि अतिरिक्त आयुक्त का प्रभार एक डिफाल्टर उपायुक्त नारायण मिश्रा को दे दिया गया है और यह डिफाल्टर अपने हिसाब से टोल मोल करके सारी शिकायतों को बलपूर्वक बंद कर देता है बड़े रहस्य वाली बातें हैं कि यह सभी जानकारियां मॉनिटरिंग करने वाले आयुक्त पवन कुमार शर्मा तक पहुंच नहीं पाती हैं उनसे संपर्क करने का प्रयास किया जाता है तो भाई साहब जीएसटी काउंसिल के अधिकारियों के साथ हमेशा व्यस्त मिलते हैं उनके पास दर्ज की गई शिकायतों क्या हिसाब किताब मांगने का आपने प्रयास किया और एक फोन भी लगा दिया तो उनके पर्सनल असिस्टेंट श्रीमान फोन उठाएंगे और एक लॉलीपॉप दे करके आपको अगली बार कॉल करने के लिए बोलेंगे और इस काम को जारी करते रहते हैं पर आप को कम से कम 1 वर्ष लग सकता है इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भ्रष्टाचार में लिप्त कोई नीचे का आदमी ही नहीं है ऊपर तक लगभग सब एक जैसे हैं और इन को झेलना जनता की जरूरी भी है मजबूरी भी है क्योंकि सब लोग अपने परिवार से मजबूर हैं इसीलिए आवश्यकता है एक नक्सली की
जो
सच है वो है,