साथियों नमस्कार,
परम श्रद्धेय हमारे पाठक गणआज अपना समाज इतना
दूषित महिलाओ के प्रति हमारे यहाँ आज से नहीं बल्कि आदिकाल से नारी को मासिक धर्म
के समय अपवित्र माना जाता है और यह सही भी है कि स्त्री इस दौरान अशुद्ध रहती है।
आज भी महिलाएं इस दौरान अशुद्ध रहती हैं एवं तमाम दैनिक व धार्मिक कार्य बाधित
रहते हैं।नारी का जितना खून इस दौरान बह जाता है उतना यदि पुरूष का बह जाय तो उसका
जिंदा बच पाना दुश्वार हो जाय। यह देवीस्वरूपा नारी शक्ति ही है जो इस स्वाभाविक
प्राकृतिक आपदा को बर्दाश्त करती है और समय बीतने के बाद यथावत हो जाती है। इसके
बावजूद नारी सदा श्रद्धा आस्था की प्रतिमूर्ति बनी रहती है और जब जब नारी के साथ
अन्याय उत्पीड़न होता है तब तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होना पड़ता है. इस समय सबरीमाला मंदिर का मामला पिछले काफी दिनों से सुर्खियों में चल रहा
था क्योंकि परम्परा के विपरीत सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये फैसले को लेकर मामला
गरमाया हुआ है और सत्ता दल खुद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध सड़क पर उतर कर रहा
है। इस मंदिर की परम्परा रही है कि इसमें एक उम्र सीमा की महिलाओं को अंदर जाकर
भगवान अय्यप्पा की पूजा अर्चना करने की अनुमति नहीं है। यह परम्परा आज से नहीं
आदिकाल से चली आ रही थी और महिलाओं को प्रवेश करने की आज्ञा नहीं है।
यह मामला पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया
था और उसने सुनवाई करने के बाद इस पुरानी परम्परा को असंवैधानिक करार देते हुए
महिलाओं को मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने की अनुमति प्रदान कर दी है। इस फैसले
का जमीनी स्तर पर प्रबल विरोध हो रहा है तथा इस विरोध में महिलाएं भी शामिल हैं।
यह सही है कि मात्र मासिक धर्म की आड़ में महिलाओं को भगवान के दर्शन पूजन अर्चन से
प्रतिबंधित करना उनके अधिकारों पर कुठाराघात करने जैसा है लेकिन जहाँ पर आस्था
श्रद्धा एवं धार्मिक मान्यताएँ जुड़ी हो वहाँ पर अधिकारों के हनन का प्रश्न ही नहीं
उठता है।अगर ऐसा होता तो वहाँ की तमाम महिलाएं सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का विरोध
नहीं करती क्योंकि देश अन्य मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित नहीं है।
वैसे इस पुरानी परम्परा में बदलाव करना
नारीशक्ति के साथ न्याय करने जैसा है क्योंकि वह भी ईश्वर की संतान है जिस तरह
पुरूष हैं और दोनों जीव हैं सिर्फ योनि बदली है। इस मंदिर से जुड़े पदाधिकारियों
भक्तों से क्षमा याचना के साथ हम आज महिलाओं को पवित्र अवस्था में पूजा अर्चना
करने के लिये प्रवेश देने की अपील करते हैं क्योंकि महिलाओं को हमेशा अपवित्र
मानना नारी के अधिकारों का हनन एवं नारी शक्ति का अपमान करने जैसा है। अदालतों का
भी फर्ज बनता है कि धार्मिक आस्था से जुड़े संवेदनशील मामलों में व्यवहारिक फैसला
दें जिससे किसी की भावनाएं आहत न हो। सरकार जब अदालत के कई फैसलों को विधेयक लाकर
पलट चुकी है तो विरोध करने की जगह इसे भी नया कानूनुबनाकर पलट देना चाहिए।
धन्यवाद।।
लखनऊ स्टेट हेड न्यूज विजन उत्तर प्रदेश भानू
मिश्रा के साथ अमन बर्मा की रिपोर्ट
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