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कांग्रेस के लिए खुशखबरी नहीं, टेंशन है तीसरे मोर्चे की कवायद

Third Front Problem For Congress
नई दिल्ली मोदी विरोधी क्षत्रप 2019 लोकसभा चुनाव की आहट के साथ ही तीसरे मोर्चे के लिए एकजुट हो रहे हैं. यूपी में सपा और बसपा 23 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर एक हुए हैं. दूसरी ओर तेलंगाना के सीएम केसीआर ने तीसरे मोर्च की चर्चा को फिर हवा दी, तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी इसकी अगुवाई करने और इसे जमीन पर उतारने की जद्दोजहद में जुट गईं.

कांग्रेस इस बात से खुश हो रही है कि 2019 में मोदी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो रहा है. लेकिन क्षत्रपों की एकजुटता बीजेपी से ज्यादा कांग्रेस के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है. ऐसे में कांग्रेस के लिए खुशखबरी नहीं बल्कि टेंशन है तीसरे मोर्चे की कवायद. क्योंकि कांग्रेस भी इसी कवायद में जुटी है. यूपीए चेयरमैन और कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विपक्षी दलों को पिछले दिनों डिनर पर बुलाया था.

राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गोलबंदी की कोशिशों में लगी कांग्रेस के लिए ममता बनर्जी और सपा-बसपा ने 2019 की सियासी राह में मुश्किलें पैदा करनी शुरू कर दी हैं. ममता ने तीसरे मोर्चे की कवायद में दिल्ली में सियासी दलों के नेताओं के साथ मंगलावर को मुलाकात की. इस फेहरिश्त में एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार, शिवसेना नेता संजय राउत , टीडीपी के नेता वाईएस चौधरी, टीआरएस की के. कविता, बीजेडी के पिनाकी मिश्रा, आरजेडी की मीसा भारती सहित सात दलों के नेता शामिल हैं. इतना ही नहीं ममता बीजेपी के बागी नेताओं के साथ भी संपर्क करना चाहती है.

ममता ने जिन पार्टियों के नेताओं के साथ मुलाकात की है उसमें शिवसेना को छोड़कर बाकी राजनीतिक दलों के नेता किसी न किसी रूप में कांग्रेस के साथी हैं. ऐसे में ये दल अगर तीसरे मोर्च का हिस्सा बनते हैं तो कहीं न कहीं कांग्रेस के लिए झटका होगा. दरअसल कांग्रेस इन्हीं क्षत्रपों को 2019 में एकजुट करके चुनाव मैदान में उतरने की कवायद कर रही है.

तीसरा मोर्चा बनने पर मोदी के मुकाबले चेहरा कौन होगा, ये विपक्ष के बीच बड़ा सवाल है, जिसका उत्तर तलाश कर पाना आसान नहीं है. कांग्रेस किसी क्षेत्रीय दल के नेता को प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में स्वीकार करने के मूड में नहीं दिख रही. वहीं विपक्ष के क्षत्रप जो कांग्रेस के संभावित सहयोगी दल हैं, वो फिलहाल राहुल गांधी और कांग्रेस के अन्य किसी नेता को पीएम उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार करने को राजी नहीं हैं.

दरअसल क्षत्रप की अपनी सियासी ताकत है. यूपी में 80 लोकसभा, पश्चिम बंगाल में 42, बिहार में 40 और तमिलनाडु में 39 सीटें हैं. कुल मिलाकर करीब 201 लोकसभा सीटें हैं और कांग्रेस इन चारों राज्यों में जूनियर पार्टनर (सपा, बसपा, टीएमसी, वामदल, आरजेडी और डीएमके) के तौर पर है. ऐसे में कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों की मर्जी पर निर्भर रहना पड़ेगा.

कांग्रेस की मांगी मुराद इन राज्यों में पूरी होने वाली नहीं है बल्कि क्षेत्रीय दलों के रहमोकरम पर ही निर्भर रहना पड़ेगा. इसके अलावा जिस तरह से गैरकांग्रेसी और गैरबीजेपी दलों के साथ तीसरे मोर्ची की कवायद की जा रही है. इससे तो 2019 में कांग्रेस की सियासी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर जिस दिन राहुल गांधी की ताजपोशी हो रही थी, उस समय उनके सहयोगी दलों के नेता उन्हें 2019 में पीएम बता रहे थे, लेकिन तीन महीने के बाद अब राहुल को 2019 का पीएम उम्मीदवार बताने से गुरेज कर रहे हैं. इसका मतलब साफ है कि 2019 में राहुल कांग्रेस का चेहरा तो हो सकते हैं लेकिन विपक्ष का होंगे, ये कहना मुश्किल है.

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