सुल्तानपुर । जयसिंहपुर तहसील
के विकास खण्ड दोस्तपुर की ग्राम पंचायत शैलखा की उत्तरी सीमा पर सिद्ध महापुरुष
बाबा जगईदास की कुटिया स्थित है जहाँ पर हिन्दू तथा मुस्लिम दोनों सम्प्रदाय के
लोग पूर्ण आस्था के साथ आते है यहाँ प्रत्येक वर्ष मकर संक्रांति 14 जनवरी को मेला लगता है जहां पर 14 व 15 जनवरी को बिशाल भंडारे का आयोजन किया जाता है
जिसमे क्षेत्रीय लोगो के अलावा अन्य जनपदों तथा अन्य प्रांतों से भी लोग श्राद्धा
के साथ भाग लेते है ।।।
बाबा जगईदास का जन्म सन 1905 में बनी गाँव मे खियाली दास
के घर हुवा इनकी माता का नाम मीना था ये माता पिता के अकेले औलाद थे ।।।
इनकी माँ मीना देवी जब गर्भ
से थी तो वे गाँव की कुछ महिलाओं के साथ दर्शन के लिये बिजेथुवा माहाबीरन सूरापुर
हनुमान जी के दर्शन को गयी जहाँ दर्शन के बाद उनको दर्द उठा मीना देवी कुछ महिलाओं
के साथ वापस घर को लौट पड़ी लेकिन वापसी
में वे ढेमा बाजार के पास ग्राम रोहनी के जंगल मे ये सीहोर के पेड़ के नीचे इनका
जन्म हुवा जन्म के समय इनकी उम्र 7 माह थी इनकी माँ वहीँ से इनको लेकर बगल के गांव वेसना भैरोपुर पहुँच गयी
जहाँ बाबा जगई दास के पिता ननिहाल था।।
वहाँ कुछ दिन बिश्राम करने के
बाद वे बनी गाँव लौट आयी गाँव पहुँचने पर
जाति बिरादरी के लोगोँ ने खूब मंगलचार किया ।।
इनका विवाह बचपन में ही ग्राम
बढोली दोस्तपुर सुगना देवी के साथ हुवा जिनसे कोई औलाद नहीं हुई ।।
इसी बीच जगईदास अयोध्या के
रविदास मंदिर में महन्थ श्री सकलु दास जी महाराज से गुरुमंत्र लेकर पत्नी सहित
बाबा रविदास जी के भक्त हो गए यह शुभ कार्य 1952 मे ही सम्पन्न हो गया था ।।
1955/56के आस पास ग्रामीण क्षेत्र
बनी शैलखा में कालरा हैजा की बीमारी फैली जिसमे बहुत लोग चिकित्सा के अभाव में मर
गए उन्हीं में इनकी पत्नी सुगना देवी का भी देहांत हो गया ।।
समय बिताने के लिए कुछ समय
बाबा जगई दास नाच मण्डली के साथ रहे उसके बाद परिजनों ने इनकी दूसरी शादी मीरा नाम के औरत के साथ कर दी जो कि बहुत
झगड़ालू स्वभाव की थी उससे दोनो को एक औलाद हुई जिसका नाम सिम्भू था वह दो वर्ष का
था तभी बीमारी की वजह से उसकी दोनोँ आँखे चली गयी उसी बीच दूसरी पत्नी भी बाबा से
झगड़ा कर मायके चली गयी बाबा ने कहा अब वापस मत आना ।।
उसके बाद जगई दास अपने दो
वर्ष के अंधे बच्चे को लेकर जंगल मे चले गए जहां वे जंगली फल पट्टी व पोखरे का
पानी पीकर जीवन बिताने लगे इसी बीच इनका बच्चा भी ईश्वर को प्यारा हो गया ।।
उसके बाद बाबा शैलखा के
जंगलों में पेड़ो के नीचे रहकर भगवत भजन करने लगे व ईश्वर में लीन रहने लगे
उन्होंने घर बार छोड़ कर पूर्ण सन्यासी का जीवन धारण कर लिया वे जगङ्गली फलों को खाकर झील का पानी पीकर जीवन यापन करने लगें
।।
जब ग्रामीणों को पता चला कि
बाबा बगल के जगंल शैलखा में रहकर तपस्या कर रहे है व फल फूल खाकर जीवन यापन कर रहे
तो लोगों ने प्रति दिन कुछ न कुछ भोजन आदि बाबा के पास भेजना शुरू कर दिया धीरे
धीरे वहाँ लोगो की भीड़ बढ़ने लगी लोग अपनी परेशानी लेकर बाबा के पास आते बाबा उनकी
बढ़ाओ को दूर कर देते लोगो की बढ़ती भीड़ को देखकर बाबा जी ने 1963 में मौन धारण कर लिया ।।
तब तक बाबा की कीर्ति दूर दूर
तक फैलने लगी थी दूर दूर से लोग बाबा का दर्शन व आशिर्बाद लेने आने लगे थे ये मौन
रहकर इसारे में ही लोगो को उनका जबाब दे देते थे ।।
इनके परम् भक्तो में इ0 जवाहरलाल राज्य बिधुत परिषद
उत्तर प्रदेश अभियन्ता,बरिष्ठ अधिकारी व निदेशक निवासी
मोहल्ला छावनी नगर पंचायत दोस्तपुर सुल्तानपुर व सुल्तानपुर के प्रमुख हिर्दय रोग
विशेषज्ञ डॉक्टर जे पी सिंह व अन्य तमाम प्रमुख लोग रहे
बाबा अपने पूरे जीवन काल मे
एक धोती को दो दुकडो में करके उसी को पहनते व ओढ़ते थे जाड़ा ,गर्मी ,बरसात
हरदम यही बस्त्र रहता था सन 1995 में ठंढी की सीजन में एक
बार बाबा की तबियत ठंड लगने बिगड़ गयी जानकारी मिलने पर डॉक्टर जे पी सिंह उन्हें
अपनी गाड़ी से लाकर करुणाश्रय अस्पताल में उन्हें भर्ती कराया कुछ समय इलाज के बाद
बाबा पुनः अपनी कुटी में चले गए ।
5 मार्च 1995 को बाबा ब्रह्मलीन हो गये उनके शिष्यों ने उनकी तपोभूमि में ही उन्हें
दफना दिया और वहीँ पर बाबा की जीवन्त मूर्ति बनाकर रख दी व मन्दिर का निर्माण कर
दिया.
आज वहाँ छोटे बड़े कुल
अधादर्जन मन्दिर है यह स्थल आज भी लगभग एक हेक्टेयर में फैला हुवा है जो कि देखने
मे बहुत ही सुरम्य लगता है इस समय वहाँ के पुजारी बाबा हरीलाल दास है जो कि पूरे
क्षेत्र की साफ सफाई पूजा पाठ करते है आज भी वहाँ लोग दूर दूर से दर्शनों के लिए
आते है और मनोती मानते है.
यहाँ जाने के लिए सुल्तानपुर
से बिरसिंहपुर होते हुए गोसैसिंहपुर बाजार से पिचरोड़ बनी गाँव होते हुए अहलाददपुर
होकर जाया जाता है.
रिपोर्ट अमन वर्मा स्टेट
कोआडिरनेटर न्यूज विजन उत्तर प्रदेश
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