सुलतानपुर-बाजार मे ज्यादातर मिलावटी हल्दी आ
रही है जिसमे पीला रंग मिला रहता है। यदि हल्दी की दाग कपडे पर लगता है तो साबुन
से धोने से उसका रंग लाल हो जाता है तथा धुप मे डालने पर दाग हट जाता है। यदि
मिलावट है तो दाग बना रहता है। मिलावट से बचने के लिये कम क्षेत्रफल एक विस्वा 125 वर्ग मीटर मे हल्दी की खेती की तकनीकी जानकारी दी जा रही है। नरेन्द्र
देव कृषि एवं प्रौधोगिक विश्व विधालय कुमारगंज अयोध्या द्वारा संचालित कृषि
विज्ञान केन्द्र बरासिन के अध्यक्ष प्रो.रविप्रकाश मौर्य ने बताया कि हल्दी की
खेती करने के लिए दोमट, मिट्टी, जिसमें
जीवांश की मात्रा अधिक हो, वह इसके लिए अति उत्तम है। राजेन्द्र
सोनिया, सुवर्णा, सुगंधा, नरेन्द्र हल्दी -1 ,2,3,98 एवं नरेन्द्र सरयू मुख्य
किस्में है। जो 200से 270 दिन में पक
कर तैयार होती है। जिनकी उत्पादन क्षमता 250 से 300 किग्रा./ विश्वा तथा सूखने पर 25प्रतिशत हल्दी
मिलती हैं। हल्दी के रोपाई का उचित समय मध्य मई से जून का महीना होता है बुआई करने
से पहले खेत की 4-5 जुताई कर, उसे पाटा
लगाकर मिट्टी को भुरभुरा एवं समतल कर लिया जाना चाहिए। जिसमें 25से 30 किग्रा प्रकन्द प्रति विश्वा लगता है।
प्रत्येक प्रकन्द में कम से कम 2-3 आॅंखे होना चाहिए। 5 से.मी. गहरी नाली में 30 से.मी. कतार से कतार तथा 20 से.मी. प्रकंद की दूरी रखकर रोपाई करें।
हल्दी की फसल रोपाई के 20-25दिन बाद हल्की सिंचाई की जरूरत पड़ती हैं। गर्मी में 7 दिन के अन्तर पर तथा शीतकाल में 15 दिन के अन्तराल
पर सिंचाई करनी चाहिए। 250 किग्रा कम्पोस्ट या गोबर की खूब
सड़ी हुई खाद प्रति विश्वा की दर से जमीन में मिला देना चाहिए। रासायनिक उर्वरक
सिंगल सुपर फास्फेट 6.25 किग्रा.एवं म्यूरेट आफ पोटाश 1.06
किग्रा. रोपाई के समय जमीन मे मिला दे। यूरिया 1.37 किग्रा मात्रा रोपाई के 45 दिनोंं बाद, एवं रोपाई के 90 दिन बाद मिट्टी चढ़ाते समय यूरिया 1.37
किग्रा एवं म्यूरेट आफ पोटाश 1.06किग्रा
डालें।
हल्दी की रोपाई के बाद हरी पत्ती, सूखी घास क्यारियों के ऊपर फैला देना चाहिए। हल्दी की अंतः खेती मिर्च एवं
अन्य फसलों के साथ मुख्यतया सब्जी वाली फसलों में कर सकते हैं। इसे अरहर, मूंग, उड़द की फसल के साथ भी लगाया जा सकता है।
अन्तरवर्ती फसल के रूप में बगीचों में जैसे आम, कटहल,
अमरूद, मे लगाकर फसल के लाभ का अतिरिक्त आय
प्राप्त की जाती है।
हल्दी फसल की खुदाई 7 से 10 माह में की जाती है। यह बोई गयी प्रजाति पर
निर्भर करता है।
प्रायः जनवरी से मार्च के मध्य खुदाई की जाती
है। जब पत्तियां पीली पड़ जाये तथा ऊपर से सूखना प्रारंभ कर दे। खुदाई के पूर्व
खेत में घूमकर निरीक्षण कर ले कि कौन-कौन से पौधे बीमारी युक्त है, उन्हें चिंहित कर अलग से खुदाई कर अलग कर दें तथा शेष को अलग अगले वर्ष के
बीज हेतु रखें। खुदाई कर उसे छाया में सुखा कर मिट्टी आदि साफ करे।
रिपोर्ट अमन वर्मा स्टेट कोआडिरनेटर न्यूज विजन
उत्तर प्रदेश
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