द्वारका नगर
वार्ड में अवैध मकान बनवाना हो तो श्रीकांत पत्तर से मुलाकात की जा सकती है, नगर निगम जबलपुर के जोन
क्रमांक 9 का एक योग्य असिस्टेंट कमिश्नर उर्फ भ्रष्ट अधिकारी आजकल बड़ा
सुर्खियों में है,
दर्जनों शिकायतें
होने के बावजूद भी निराकरण की गति लगभग 0% की ओर बढ़ रही है, और अवैध निर्माणों की
विधिवत सूचनाएं दिए जाने के बावजूद भी, इस अधिकारी के द्वारा अवैध निर्माण को
रोकने के लिए, किसी भी प्रकार की कोई कार्यवाही संकलित नहीं की जाती है, नतीजा यह
होता है, कि अवैध निर्माण करने वालों को बल मिलता है, ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों की
कार्यशैली पूरे नगर निगम की छवि खराब करती है,
इनकी मॉनिटरिंग करने वाले
आईएएस आशीष कुमार के पास भी इसकी शिकायत प्रस्तुत की गई, परंतु काम का बोझ इतना
ज्यादा है, कि ऐसे भ्रष्टाचार पर उनके द्वारा कार्रवाई की जाना संभव नहीं हो पाती
है,
विभागीय जांच का नही होना,
भ्रष्ट अधिकारियों की योग्यताओं में एवं कॉन्फिडेंट में नेगटिव इजाफा होता है, लगातार
अवैध अनुतोष अर्जित करने की नियत से सभी नियमों को ताक में रखकर कार्यवाही करते
हैं, और अवैध निर्माताओं के समर्थन में पूरे प्रकाशन करते हैं, मामला गुरुद्वारे
के सामने चल रहे निर्माण के संबंध में एक शिकायतकर्ता नवंबर 2019 को संभागीय अधिकारी
श्रीकांत पत्तर के समक्ष प्रस्तुत की थी,
शिकायत का परिशीलन करने के उपरांत ज्ञात हुआ कि जहां पर अवैध निर्माण हो रहा है,
वह जमीन शासकीय, सार्वजनिक तथा निजी है, इन तीनों चित्रों में एक साथ स्थानीय
निवासी के द्वारा अतिक्रमण कराया जा रहा था, जिसे रोकने की कार्यवाही एवं स्वीकृत
नक्शे की जानकारी के संबंध में आवेदक ने जानकारी की अपेक्षा की और शिकायत दर्ज की,
श्रीकांत पत्तर उल्टा शिकायतकर्ता के पास 31 जनवरी 2020 को लेटर भेजकर के निर्माण के मानचित्र से संबंधित दस्तावेजों की पंजीकरण की
जानकारी मांग ली,
यह अपने आप में हास्य
प्रद है की , श्रीकांत पत्तर ने ऐसी कार्यवाही है, जिसे कहते हैं कि फांसी का फंदा खुद के गले में
डालना, इस मूर्ख अधिकारी ने इसको स्वीकार कर लिया कि, ऐसा कोई भी निर्माण से
संबंधित दस्तावेज विभाग में संकलित नहीं किया गया, जिस कार्यकाल भवन शाखा में
नक्शे शाखा में उपलब्ध नहीं है, ऐसी स्थिति में शिकायतकर्ता की शिकायत वैध हो जाती
है, और उस पर नगर निगम अधिनियम की धारा 307 दो एवं तीन के तहत नोटिस की कार्यवाही शुरू
होती है, वैधानिक रूप से आवश्यक हो जाता है, शिकायत हो गई है तो , कार्यवाही नही होना, अधिकारी
के बिक जाने संभावनाओं को नकारा नहीं जा सकता |
मध्य प्रदेश के छपारा के
गरीब एरिया से निकला यह युवक लोक सेवा आयोग से चयनित किया गया है, जिसने लोक सेवा
करने की नियत से यह नौकरी ज्वाइन की थी, या रिश्वत की आय अर्जित करने की नियत से
की थी , इसके विरुद्ध विभागीय जांच का निराकरण होने के बाद ही है स्पष्ट हो पाएगा,
फिलहाल भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ लोकायुक्त में और घमापुर थाने में ऍफ़ आई आर दर्ज करने के प्रस्ताव दे दिए गए हैं, जिसमें प्रकरण के फर्जी संकलन एवं अविअध निर्माण करता के पक्ष
में संकलन पर एवं भ्रष्टाचार अधिनियम अंतर्गत तथा लोक सेवा सिविल सर्विस अधिनियम
अंतर्गत कार्यवाही की जानी है |
नगर निगम आयुक्त से इस
भ्रष्ट अधिकारी के निलंबन की अपेक्षा भी की गई है, जिसके संबंध में प्रस्ताव से
भेज दिया गया है, साथ ही यह सूचना संभाग आयुक्त एवं कलेक्टर जबलपुर को भी भेज दी
गई है, प्रशासन की छवि खराब करने वाले ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों को बाहर का रास्ता
दिखाएं ना जाना समाज हित में अत्यंत आवश्यक हो गया है, गाँव में खेती किसानी के
योग्य लोगो की भरती महंगी पढ़ जाती है, इसी तरह के अधिकारी प्रशासन पर बोझ बन जाते हैं,
और उसकी छवि खराब करते है,
जारी अवैध निर्माण के फोटो आज लेंटर का अंतिम दिन
पूर्व में भी इनके कार्यालय में जो डिफाल्टरी हो
रही थी, उसके संबंध में भी न्यूज़ प्रकाशित की गई थी, जिस पर कोई फर्क नहीं पड़ा
और निगमायुक्त के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई, लिहाजा ऐसे में इन भ्रष्ट
अधिकारियों का हौसला बुलंद हो जाता है, और जनता से खुलकर के पैसा मांगते हैं जहा
माल मिले वहा काम करते हैं
मध्य प्रदेश
लोक सेवा आयोग के द्वारा भी वैकेंसी निकाली जाती है, कि लोक सेवकों की भर्ती की जा सके, जिनमें अच्छी योग्यता हो, परंतु कहीं ना कहीं सिस्टम में कमी/
कानून की बाध्यता, होने के कारण, गली मोहल्ले में बेरोजगार घूमने
वाले गरीब लोगों को, जिन्हें नौकरी की तलाश रहती है, दो पैसे ईमानदारी के कमाने की
आस रहती है, ऐसे लोगों को जब नौकरी मिल जाती है, तो वह कैसे पलट जाते हैं, उसका
सीधा- सुथरा उदाहरण, आपके सामने यह संभागीय अधिकारी है, कल तक नौकरी के लिए भटकने
वाले लोगों को जब नौकरी मिल जाती है, तो ऐसे हो जाते हैं,
एक भृत्य के
समान जिसकी योग्यता है, उसे असिस्टेंट कमिश्नर बनाकर पदस्थ कर दिया जाता है,
योग्यता में कमी होने कारण, उसका डिमोशन होना चाहिए अगर इमानदारी से इसके ऊपर
विभागीय जांच संधारित की जाए तो तत्काल प्रभाव से इसे अच्छा खासा डिमोशन मिल सकता है,