हर देश अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए और आम जनता की सुरक्षा के लिए
विभिन्न प्रकार की सेनाओं का गठन करता है, हमारे देश में भी बीएसएफ, सीआरपीएफ, एनएसजी, आर्मी जैसे कंपनी के गठन देश की सुरक्षा के
लिहाज से किए गए हैं, और समय-समय पर इन्हें विभिन्न
प्रकार के अस्त्र शस्त्र से मजबूत किए जाने का प्रावधान भी एक नियम के तौर पर रखा
है, इन्हें हमेशा से दुरुस्त करने के प्रयास सरकार करती
आई है, और इस पर होने
वाले खर्च का एक महत्वपूर्ण हिस्सा देश के बजट से निकाला जाता है, जिसमें इन सभी सुरक्षा बलो
में तैनात अलग-अलग पदों पर जवानों और
अधिकारियों को हमेशा अपडेट रहने के लिए खर्च किया
जाता,
यह सभी बलों का गठन इस आधार पर किया गया है, कि जब कभी दुश्मन सामने से कोई वार करेगा तो
उसका जवाब हमारे सुरक्षा बल अपनी शस्त्र क्षमता के अनुसार और अपने
जज्बे के आधार पर दे सकती हैं,
आज हमारा देश कोरोना महामारी संकट से जूझ रहा है। पिछली शताब्दी के
दौरान 500 मिलियन से अधिक
लोग संक्रामक रोगों का शिकार हुए हैं। परन्तु अधिकांशतः व्यक्ति रोगजनक या
जानबूझकर जारी किए गए विषाक्त पदार्थों के कारण काल कवलित हुए हैं। द्वितीय विश्व
युद्ध के दौरान जापान के द्वारा चीन पर किए गए हमले में भी इन विषाक्त पदार्थों का
प्रयोग किया गया। यद्यपि 1925 एवं 1972 में अंतरराष्ट्रीय संधियों के माध्यम से जैविक हथियारों के बहिष्कार का
संकल्प पारित किया गया किंतु आज
भी इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है, की अनेक देश व्यापक पैमाने पर जैविक हथियारों
एवं आक्रामक हथियारों के अनुसंधान मे सम्मिलित होकर, ऐसे
खतरनाक हथियारों का उत्पादन कर रहे हैं, जो मानव जीवन
के लिए घातक एवं विनाशकारी है। इन्ही में से रोग पैदा करने वाले बैक्टीरिया, वायरस एवं विषाक्त पदार्थ के प्रयोग से मानव सभ्यता के विनाश की संभावना
से इंकार नहीं किया जा सकता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सेना के द्वारा हैजा और और टायफस
के प्रकोप का अध्ययन करने के लिए चीन के गांव के 1000 से अधिक पानी के कुओं में जहर मिला दिया
गया था । बर्बर युग की
समाप्ति के उपरांतआधुनिक मानव सभ्यता के पश्चात मनुष्य के द्वारा हत्या के प्रयोजन
के लिए न केवल व्यक्तिगत दुश्मनी के खिलाफ अपितु सेनाओं के खिलाफ भी जहर का
इस्तेमाल किया गया है। 1874 ब्रसेल्स में एवं 1899 में
अंतरराष्ट्रीय घोषणाओं के माध्यम से जहर वाले हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया
गया किंतु विश्वास में बनाई गई यह संधियां प्रभावी सिद्ध नहीं हुई क्योंकि इनमें
नियंत्रण का कोई साधन नहीं था । पहले विश्व युद्ध के दौरान भी जर्मनी की सेना के
द्वारा जैविक एवं रासायनिक दोनों ही प्रकार के हथियारों का उपयोग किया गया। जर्मनी के द्वारा शत्रु देश में पशु आहार को दूषित करने का प्रयास किया
गया था जापानी विमानों के द्वारा
द्वारा चीनी शहरों पर प्लेग के संक्रमित फ्लीज )मक्खीयां( को गिराया गया था।
कोरोना वायरस एक एक जैविक हथियार है, जिसका उपयोग बड़े ही शातिर अंदाज में चीन
के द्वारा किया गया है, जिसकी उपयोग में अभी तक
कोई भी देश चीन की तरफ सीधी उंगली करके बात करने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि अमेरिका, इटली ,फ्रांस, ब्रिटेन, रूस , स्पेन जैसे सभी सक्षम देश अभी तक इस
वायरस के सामने घुटने टेक चुके हैं, और जिन देशों ने हार नहीं मानी है, अभी फिर थोड़े दिनों में इस महामारी पर इतना खर्च कर चुके होंगे कि उन्हें
आर्थिक रूप से उभरने में 10 वर्ष से भी अधिक लग सकते हैं, बस यही से चीन अपने आप को मजबूत करना शुरू कर चुका है आने वाले समय में अगर इस जैविक हथियार को
बार-बार चीन की तरफ से इस्तेमाल किया गया तो इसके परिणाम बहुत भयानक हो सकते हैं,
जैविक हथियार
कितने प्रकार के होते हैं, उनका उपयोग कब और कैसे किया जा सकता है, उसके
परिणाम कितने घातक हो सकते हैं, उसके संक्रमण की
पराकाष्ठा का अनुमान, और उससे सुरक्षा कैसे की जा
सकती है, जैसे कई प्रश्न हैं जिनका समाधान करने के लिए
हमारे देश में कोई व्यवस्था नहीं थी साथ ही अमेरिका इटली फ्रांस ब्रिटेन रूस स्पेन जैसे सक्षम देशों के पास भी इस
तरह के हमले के खिलाफ एक सक्षम कार्यवाही करने के लिए ना कोई तैयारी है ना ही किसी
को इस बात का अनुमान था,
जैविक हथियार
ऐसा शब्द नहीं है जिसे देश का ख़ुफ़िया विभाग नहीं जानता हो, यह ऐसा शब्द भी नहीं है जो कभी किसी ने सुना
ही नहीं हो, इस जैविक हथियार शब्द को कभी
गंभीरता से नहीं लिया गया, भ्रष्टाचार की गहरी खाई से गुजर रहा यह देश और यहां पर पदस्थ भ्रष्ट
अधिकारी जिन्होंने प्रशासन की हमेशा से छवि खराब करके रखी है जिनके हजारों रिकॉर्ड
लोकायुक्त कार्यालय और आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ कार्यालय में जांच के दायरे में हैं
और कईयों के मामले न्यायालय में विचाराधीन है ऐसे भ्रष्टों ने जनता के साथ कभी
समन्वय स्थापित ही नहीं किया है, जिस काम के लिए जिसे
पदस्थ किया जाता है, वह
नौकरी पाने के बाद अपने पति व कर्तव्यों का दुरुपयोग पूरी निष्ठा के साथ करता है, और ऐसे कार्य
करने वाले अधिकारियों पर जनता कभी विश्वास नहीं करती है, आज उसी का नतीजा है कि प्रशासन को कठोर होने के बावजूद जनता
कर्फ्यू का पालन कराने में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, अगर
जनता को प्रशासन की योग्यता ऊपर 100% भरोसा होता
तो आज प्रशासन और जनता के बीच एक उचित समन्वय
बिठाया जा कर इस महामारी से पूरे कॉन्फिडेंस के
साथ लड़ा जा सकता था,
उदाहरण में एक सत्य मौजूद है, काफी शहरों से मरकज के जमाती ढूंढ ढूंढ निकाले जा रहे हैं, उसके लिए प्रशासन को मेहनत करनी पड़ रही है, और
इन्हें पकड़ने में हो रही देरी संक्रमण का बहुत बड़ा कारण भी बन रही है, जो प्रशासन के लिए एक चुनौती है, और जनता के
लिए एक बस एक यही उदाहरण अपने आप में काफी है,
मरकज के लोगों की
सूचना देने पर सूचना देने वाले का नाम सुरक्षित रखा जाएगा, इस सत्य पर आम जनता विश्वास नहीं कर पा रही है, क्योंकि ऐसे हजारों मामले हो चुके हैं, जिन्होंने
जनता के मन में अविश्वास उत्पन्न कर दिया है, एक
जमाना था जब किसी का एक्सीडेंट होता था, या लड़ाई झगड़े
में कोई घायल होता था, उसे व्यक्ति लेकर के हॉस्पिटल
पहुंचा था, तो हॉस्पिटल वाले उसका इलाज नहीं करते थे और
पहले पुलिस को बुलाते थे और जैसे ही पुलिस आती थी, तो
जनता से, मददगार से उल्टे सवाल किए जाते थे, उसका नाम गवाही में डाला जाता था, फिर जब
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश पारित हुआ, तब जाकर के इस
तरह की घटनाओं में विराम लगा और Humanity First, Treatment First, को प्राथमिकता मिली परंतु वह आज भी आम जनता के जहन में है , जिसके कारण प्रशासन और
जनता में एक विश्वास बड़ा मुद्दा है,
महामारी के इस विश्व युद्ध में साथ में लेकर के हर गली मोहल्ले में
कॉलोनी कैंपस में अपार्टमेंट और टाउन में वहां के रहने वाले निवासियों में से
गिनती के दो या चार पदाधिकारी अस्थाई तौर पर नियुक्त करें नियमों का उल्लंघन करने वालों की जानकारी एमपी
पुलिस एप्लीकेशन MPECOP पर प्राप्त हो सकेगी
और उस पर तत्काल कार्यवाही होगी तब जाकर के उल्लंघन करने वालों के मन में एक भय
व्याप्त होगा, जिसे प्रशासन को इस महामारी को नियंत्रित
करने में बड़ी आसानी होगी, यही दो से चार लोगों की
नियुक्तियां अपने-अपने क्षेत्रों में मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति में भी अहम
भूमिका निभा सकती है, जिससे घर से बाहर निकलने की
आवश्यकता नहीं पड़ेगी, मौका है
प्रशासन को इस संबंध में बिठाकर जनता से सहयोग लेने का, पर महामारी का जय काल इतना विकराल है, सोशल डिस्टेंसिंग के नाम पर सामूहिक सलाहकार समिति की बैठक नहीं हो पा रही है.
जैविक हथियार से होने वाले नुकसान को कंट्रोल करने के लिए सरकार
एक नए विभाग के स्थापित करने की औपचारिक घोषणा भी कर सकती
है क्योंकि इस देश में औपचारिकता के आधार पर मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स, प्रधानमंत्री कार्यालय सहित कई अन्य विभागों ने कई अधिसूचना जारी की है जो नीचे के अधिकारी मानते नहीं है एक
बंद फाइल में विभाग के अधिकारी के पास पड़ी सड रही होती हैं,
आज इस महामारी के दौर में प्रशासन को जिलों में शहरों में बाहर से आए
लोगों को ढूंढने में चिन्हित करने में अनावश्यक अधिक परिश्रम करना पड़ रहा है, जिसका नतीजा यह है कि सही समय पर संक्रमित
व्यक्ति ट्रेक नहीं हो पा रहा है, जिसके कारण संक्रमण
के प्रकरणों में इजाफा भी हो रहा है, यही आम जनता का
सहयोग अगर प्रशासन को मिल जाए, बाहर से आए हुए व्यक्ति
की जानकारी अगर उसका पड़ोसी देता है तो उसे पूरी सुरक्षा मिलनी चाहिए और उसका नाम
लीक नहीं होना चाहिए.
आज जो प्रशासन को जद्दोजहद जनता को मैनेज करने में झेलनी पड़ रही है, उसका सबसे बड़ा कारण है, जनता का अशिक्षित होना कभी सरकारी महकमे ने कभी सोचा ही नहीं है, कि सरकारी स्कूलों में अगर अच्छी व्यवस्था होती, बच्चों को स्कॉलरशिप मिलती, शिक्षा मुफ्त होती, तो आज संक्रमण से बचाव के तरीको को समझाने में इतनी मुश्किलें नहीं आती और
उसे कंट्रोल करने के लिए ग्राउंड पर नहीं उतरना पड़ता, यह
एक अनावश्यक कार्य है, जिसे प्रशासन ने खुद पाल पोस कर
बड़ा किया है,
जिस देश में किसानों के नाम पर राजनीति की जाती है, जिस देश में सरकारी अनुकंपाओं का मात्र एक
किसान अधिकारिक उत्तराधिकारी है और पात्र है, जिसे हर राज्य की सरकार सर आंखों पर रखती है, स्वयं
उसे मिलने वाली सरकारी सहायता ओं में राजस्व अधिकारियों के द्वारा सेंध लगाई जाती
है, कभी ओलावृष्टि, कभी आग, कभी कीड़ा लगने से होने वाली फसल की तबाही के मुआवजे में जितनी गड़बड़ियां
होती है उतनी आज तक अन्य किसी देश में दर्ज नहीं होती, जिस
देश में राजस्व प्रकरणों के रखरखाव के लिए बनाया गया सॉफ्टवेयर आरसीएमएस और पुलिस
विभाग के अंतर्गत चलने वाला सीसीटीएनएस पूरी तरह से अधिकारियों के एकाधिकार के
अंतर्गत संचालित किया जाता है जिससे जनता में केवल शासन के प्रति विरोध उत्पन्न
होता है, जिस प्रदेश में सरकार केवल इसलिए बनाई जाती हो
ताकि पार्टी और उसके कार्यकर्ताओं के रुके हुए कार्यों का सही समय पर बिना किसी
लेनदेन के कार्य हो सके, ऐसे माहौल में आम आदमी से लॉक
डाउन के समय देश की सुरक्षा का हवाला देते हुए पूर्ण रूप से शासन द्वारा बनाए गए नियमों का पालन करते हुए सहयोग की
अपेक्षा करना एक मजाक है, क्योंकि इस प्रदेश में स्वयं कानून का पालन कराने वाले कानून का पालन नहीं
करते,
18 अप्रैल 2020 की रात्रि को नेताजी सुभाष चंद्र बोस मेडिकल कॉलेज से , कोरोना वायरस पॉजिटिव, रासुका का आरोपी फरार हो
जाता है, चार पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया जाता है, पुलिस अधीक्षक को हटा देती है, यूं तो कई मामले
एसपी जबलपुर अमर सिंह के खिलाफ जांच के दायरे में अनावश्यक लंबित रहे हैं जिन पर
विभागीय जांच चल रही है जिन मामलों में उन्हें बहुत पहले हटा देना चाहिए था परंतु
यह राजनीतिक आवश्यकता नहीं थी, 18 अप्रैल की इस घटना से
जाने तक व्यवस्था की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान
ने एसपी जबलपुर हस्तांतरित करते हुए सहायक उप महा निरीक्षक पुलिस मुख्यालय भोपाल
पदस्थ किया,
20 अप्रैल 2020 को
राजगढ़ जिले के कलेक्टर नीरज सिंह जिले के चिकित्सा अधिकारियों को बड़े ही भद्दे
लहजे में अपमानित करते हुए निलंबित करने की धमकी दी उनकी योग्यताओं पर प्रश्न उठाए, यह पूरा वृतांत बैठक के दौरान सभी कर्मचारियों
की उपस्थिति में सभी के साथ बारी-बारी हुआ, जिससे व्यथित
होकर प्रमुख सचिव लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय वल्लभ भवन भोपाल को
सभी के द्वारा एक सामूहिक पत्र हस्ताक्षरित कर भेजा गया और कलेक्टर के खिलाफ
कार्रवाई की अपेक्षा की गई, आईएएस अधिकारी के द्वारा
अपने अधिकारों का इतना इतिहास में पहली बार शिकायत पत्रों में दर्ज हुआ है, क्योंकि यह कायदे कानून का इसीलिए इसके खिलाफ एफ आई आर दर्ज होनी चाहिए परंतु
स्वयं आईएएस अधिकारी होते हुए इसके खिलाफ कार्यवाही नहीं हो सकती क्योंकि नगर के
हित के लिए उठाए गए कदम कितने भी अशालीन क्यों ना हो, परंतु
इन्हें सजा के योग्य करार नहीं दिया जा सकता, संदेह
के आधार का लाभ जरूर दिया जा सकता है, परंतु जिले के
सभी चिकित्सकों के द्वारा फिलहाल शिकायत दर्ज करा दी गई है
आज सोशल मीडिया पर अशिक्षित व्यक्ति भी सक्रिय है, और व्हाट्सएप चला रहा है, फेसबुक चला रहा है, और बाहर से आए हुए लोगों की
जानकारी लगभग हर एक व्यक्ति को होती है, वह चाहे तो
प्रशासन को उपलब्ध करा सकता है, परंतु ऐसी कौन सी
स्थिति है, जो अविश्वास उत्पन्न करती है, उनके प्रति इस विषय में भी उचित कार्यवाहीया होनी चाहिए,