सूचना अधिकार २००५ के आवेदन का निराकरण की अकल नही जिसको उसको उपायुक्त वाणिज्यिक कर जबलपुर पदस्त किया गया है, विभाग में सिर्फ अंधेर है, पुरानो प्रकरणों में पदावनति हो तो , one by one चपरासी से भी हाथ धो बैठा हो चूका होता ये भ्रष्ट उपायुक्त.
जल्दी ही Supertime Scale से बाहर होगा आयुक्त, अयोग्यता की पराकाष्टा के चलते
जल्दी ही Supertime Scale से बाहर होगा आयुक्त, अयोग्यता की पराकाष्टा के चलते
संसदीय और संसदीय भाषा में तथा शब्द ``घिनौने``
को भी जो शर्मिंदा कर दे, ऐसे घटिया स्तर
के उपायुक्त नारायण मिश्र को विभाग के ही आईएएस पवन कुमार शर्मा ने संरक्षण दे कर
रखा है, रोक कर रखी है उसकी जांच, अभी साहब की खातिरदारी
का सवाल होता तो निलंबित हो चुके होते मिश्र जी,
बंद करना पड़ेगा बोलना ``मेरा भारत महान``
क्योंकि मेरा भारत तो नर पिच्शाचों से भरा
हुआ है, और इन पिच्शाचों को सरकारी नियुक्तियां दी गई है, लोक हित और जनहित में
लोक सेवा करने के लिए नियुक्त किया गया है, यह वही काले अंग्रेज हैं जिनको गोरों
में तैनात किया है. जो सिर्फ पैसा बटोरने नियुक्त है,
शराब खोरी, वेश्यावृत्ति, रिश्वतखोरी वो भी
विभाग में गुप्त कमरे में, जिसकी सारी चरम सीमा पार करने के बाद गिनती के दो तीन
वरिष्ठ डिफाल्टर अधिकारियों के तलवे चाट कर लगातार इसी पद पर बने हुए हैं नारायण
मिश्रा
विभाग के आयुक्त आईएएस महान बुद्धिजीवी पवन कुमार शर्मा के फ्यूज उड़ गए हैं न जाने कौन सी जीवन घुट्टी पिला दी गई
है, इस चाटुकार अधिकारी के द्वारा की सारी तथ्यात्मक जानकारी होने के बावजूद इस
भ्रष्ट अधिकारी नारायण मिश्रा का निलंबन अभी तक रुका हुआ है
एक
भ्रष्ट था, ओम प्रकाश वर्मा जिसको 5 साल की सजा पड़ गई पिताजी की दुकान समझ कर जबलपुर का
अपीलीय कार्यालय संचालित करने वाला ओम प्रकाश वर्मा 2003 के एक फर्जी पंजीयन
मामले में उज्जैन की स्पेशल लोकायुक्त कोर्ट से 4 साल के सश्रम कारावास के
लिए दंडित किया गया है
यह प्रकरण कोर्ट में लंबित था , उसके बावजूद वह रिटायर हो गया और सारे
कार्यकाल के फंड के पैसे लेकर रफूचक्कर हो गया, रिटायरमेंट के 4 महीने के बाद उसे
न्यायालय से सजा सुनाई गई परंतु विभाग के आईएएस
महान बुद्धिजीवी प्रमुख सचिव मनोज कुमार श्रीवास्तव के सर पर जूं नहीं रेंगी,
कि मध्य प्रदेश
शासन को करोड़ों की शिकायत करने वाला ओम प्रकाश वर्मा अगर रिटायर हो गया तो यह
क्षति कवर कैसे होगी राजस्व खजाने को किस प्रकार से वापस भरा जाएगा
एक नया कांड हो चुका है एक फर्म के फॉर्म ४९ बेच खाए नारायण मिश्रा ने और अभी तक
उसकी कंप्लेंट पर लगभग हर वर्ग का अधिकारी चुप्पी साधे है, उच्च न्यायालय में भी
याचिका सुनवाई के लिए मोशन हियरिंग में है, जल्दी ही आदेश पारित होंगे और इस
भ्रष्ट अधिकारी के विरुद्ध वह सभी सबूत हाथ में आ पाएंगे, जिसके मुख्य घोटाले में यह सीधा स्पष्ट लिप्त रहा है, इसे कम से कम 10 साल की सजा हो सकती है, क्योंकि उस मामले में इसके द्वारा
एक फर्जी फर्म खोलकर फार्म 49 अज्ञात लोगों को कौड़ियों के दाम
बेचे गए हैं जिसमें राज्य शासन को करोड़ों की छती कारत
हुई है
अगली शिकायत ``सुपर टाइम स्केल`` में काम कर रहे दो वरिष्ठ अधिकारियों के विरुद्ध लगभग सभी विभागों
में भेजी जाना प्रस्तावित है ताकि इनका प्रमोशन ना हो सके और योग्य ईमानदार
कर्तव्य निष्ठ सत्यनिष्ठ अधिकारियों को मौका मिल सके जो अनावश्यक भ्रष्ट
अधिकारियों के चलते निचले पदों पर अनावश्यक पदस्थ है.
अतिरिक्त संभाग आयुक्त अरविंद यादव ने कलेक्टर जबलपुर
छवि भारद्वाज को नियुक्त किया है नारायण मिश्रा के द्वारा की गई घोटाले बाजी पर
जांच करके 15 दिन के अंदर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने के लिए परंतु अभी तक जुलाई 2018
से वह 4 महीने से लंबित है, बिना याचिका दायर बिना दायर शिकायत ये काम भी नही होना,
देश का घटिया सिस्टम है जिसमे सर शिकायत ओर अपील ओर याचिका में आम जनता अपराधी बन
जाती है, ओर फिर उसपे फिल्म का निर्माण होता है, जनता मजे लेती है, अपने देश की
लापरवाह अधिकारीक कार्यप्रणाली पे