सिन्धी धर्मशाला में हुए करोडो के हेर फेर में लिप्त, आरोपियों के साथ बैठक करते तत्कालीन थाना प्रभारी ओमती, नीरज वर्मा, लोकसेवक, मामला ही दफ़न कर दिया, उल्टा फरियादी को निपटा दिए
सबसे पहले पुलिस डिपार्टमेंट Private होना चाहिए
पुलिस विभाग में थाना प्रभारी नीरज वर्मा के विचित्र
कारनामे, हटाया गया थाना रांझी से, अपराधियों के साथ मिलीभगत के कई कारनामे,
SP को भी किया गुमराह.
दिनांक 20 जनवरी
2019 को एक शिकायतकर्ता ने पुलिस थाना ओमती में शिकायत प्रस्तुत की थी, कि स्टेट बैंक ऑफ
इंडिया मेन ब्रांच के एटीएम में जो थाना ओमती के अंतर्गत क्षेत्र आता है, वहां पर एक अज्ञात
व्यक्ति ने उसके अकाउंट से ₹115000 पार कर दिए,
शिकायतकर्ता सूबेदार शैलेंद्र कुमार गुप्ता मुख्य अभियंता आर्मी में पदस्थ है,
जिसके आवेदन पर एफ आई आर दर्ज की गई और मामले को जांच में लिया गया, सीसीटीवी
फुटेज एवं अन्यत्र स्त्रोतों के माध्यम से इकट्ठा की गई, जानकारी में ₹115000 का पार होना पाया गया, यह घटना 2 दिसंबर 2018 की थी, जब सूबेदार के अकाउंट से पैसे निकालने के मैसेज
उसके मोबाइल पर उसे प्राप्त हुए और उसने तत्काल प्रभाव से एटीएम को ब्लॉक कराया और
बाकी बची राशि को दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर किया,
टी आई , नीरज वर्मा मामला क्र 1
इस पूरे जांच में तत्कालीन थाना प्रभारी नीरज वर्मा ने शिकायत तो दर्ज कर ली थी, पर जांचकर्ता अधिकारी के द्वारा की गई जांच में
पकड़े गए आरोपी से सांठगांठ के चलते उसकी गिरफ्तारी नहीं हो पा रही थी, नतीजा यही हुआ कि
मामला जांच में रखा था, और अभी तक उस पर जांच ही चल रही है, और इस मामले में आरोपी माजिद मूसा और नीरज वर्मा थाना प्रभारी ओमती के व्हाट्सएप
चैट के विषय लीक हो सोशल मीडिया अपराधियों के साथ मिलीभगत में नीरज वर्मा का नाम
आते ही पुलिस अधीक्षक के द्वारा तत्काल प्रभाव से नीरज वर्मा को थाने से हटाकर
रक्षित केंद्र जबलपुर में पदस्थ कर दिया, वर्तमान में नीरज वर्मा थाना
प्रभारी रांची में पदस्थ हैं जिन्हें आज रिलीज कर दिया जाएगा इस मामले में धारा 420,
467,
468,
474,
380,
120b और आईटी एक्ट की धारा 66 सी एवं 66d के अंतर्गत मामला दर्ज है, इसी मामले में फिलहाल हटाया गया है पुलिस के इतने गहरे संबंध वह भी इनामी अपराधी के साथ यह तो पहली मर्तबा हुआ कि व्हाट्सएप चैट लीक हो गई नहीं तो यह रहस्य हमेशा रहस्य ही रह जाता थाना प्रभारी पर कोई मामला दर्ज नहीं हुआ, अब शुरू होगी कभी निष्कर्ष तक न पहुँचने वाली जांच ,
टी आई , नीरज वर्मा मामला क्र 2
दूसरा मामला हम आपको बताते हैं, जो करोडो के हेरफेर से जुड़ा हुआ है, जिसमें
अप्रैल 2019 से नीरज वर्मा ने लगातार जांच को प्रभावित करते हुए एफ आई आर दर्ज ही नहीं होने दी जिसमें लगभग 10 से 12 करोड़ का घपला है, इस मामले में आरोपियों के साथ बैठकर
सांठगांठ करते हुए उनकी फोटो खबर के साथ पोस्ट है, नीरज वर्मा ने पद पर रहते हुए अपने अधिकारों का
इतना दूभर दुरुपयोग किया है, जिसमें उसने अपने भ्रष्ट होने का पूरा परिचय दिया है,
और ना ही प्रकरण में विधि संगत विवेचना की, नाही सबूत इकट्ठे करने के प्रयास किए, आरोपियों के पक्ष में पूरी जांच संकलित कर
आरोपियों को लाभ पहुंचाया और इस मामले की शिकायत जब जबलपुर एसपी अमित सिंह को की
गई, तो नीरज वर्मा के द्वारा एसपी जबलपुर
को भी अनर्गल प्रतिवेदन विषय से हट के तथ्यों का उल्लेख कर गुमराह करने का पूरा
प्रयास किया गया,
https://www.newsvisionindia.tv/2019/09/sindhi-samaj-jbp-defaulter-nandlal-kungani-sadhuram-beej-bhartipur-scam-crores-sindhi-dharmshala.html
सिन्धी समाज जबलपुर का नटवर लाल नंदलाल कुंगानी, अपने ही समाज से की गद्दारी, फर्जी रसीद से वसूले करोड़ो, जाँच के नाम पे रिकॉर्ड गायब, तत्कालीन थाना प्रभारी नीरज वर्मा ने नही की कार्यवाही
https://www.newsvisionindia.tv/2019/09/sindhi-samaj-jbp-defaulter-nandlal-kungani-sadhuram-beej-bhartipur-scam-crores-sindhi-dharmshala.html
सिन्धी समाज जबलपुर का नटवर लाल नंदलाल कुंगानी, अपने ही समाज से की गद्दारी, फर्जी रसीद से वसूले करोड़ो, जाँच के नाम पे रिकॉर्ड गायब, तत्कालीन थाना प्रभारी नीरज वर्मा ने नही की कार्यवाही
सामाजिक स्तर पर बड़े ही अफसोस का विषय है कि अपनी जिम्मेदारी से गद्दारी करने
वाले लोग मुख्य पदों पर पदस्थ होते हैं, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ता
है, सीधे-साधे लोग जो शासन के योग्य अधिकारियों से अच्छी सेवाओं की उम्मीद करते
हैं, उनके विश्वासों को ठेस पहुंचती है, और आरोपी पदस्थ
अधिकारी भ्रष्ट पाए जाने पर भी उनके खिलाफ डायरेक्ट कोई एफआईआर दर्ज नहीं होती है,
परंतु आम आदमी के खिलाफ डायरेक्ट एफ आई आर कैसे की जाती है, इसका भी जीता जागता
उदाहरण ओमती थाने में ही कई बार अग्रसर हुआ है, oct 2019 में फर्जी गवाह फर्जी
घटना फर्जी शिकायत करता के आवेदन कथन पर मामला कायम कर दिया, और भी कई
ऐसे मामले हैं जिनमें कभी किसी घटना का घटना वास्तविक में हुआ ही नहीं है, और काल्पनिक घटनाओं के आधार पर एफ आई आर दर्ज कर
ली जाती है, और न्यायालय के पाले में इस
फाइल को हस्तांतरित कर दिया जाता है, अनावश्यक न्यायालयों में ऐसे प्रकरण लंबी
कतार में आ रहे हैं, जो कोर्ट पर अनावश्यक बोझ हैं, इनकी ऑडिट सही तरीके से नहीं
होने के कारण फर्जी केसों में इजाफा होता है, और फरार आरोपी पकड़े नहीं जाते हैं,
ना ही वारंट तामील होते,
टी आई , नीरज वर्मा मामला क्र 3
ऐसा यह तीसरा मामला था,, जब संजय
मंगतानी मोबाइल व्यापारी जिस पर क्राइस्ट स्कूल के पास कुछ लोगों ने हमला किया था
और नीरज वर्मा थाना प्रभारी के द्वारा पांच अज्ञात लोगों
के खिलाफ रखना दर्ज किया गया जिनकी गिरफ्तारी उनके कार्यकाल में नहीं हो
पाई, सारे स्टेटमेंट आवेदक की ओर से लेने के बावजूद भी जानकारी प्राप्त होने के
बाद भी उसके द्वारा किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की गयी, जिससे यह स्पष्ट
होता है कि योग्यता में कमी के चलते महत्वपूर्ण पदों पर पदस्थ नहीं किया जाना
चाहिए ,यह अपने आप में एक घटिया लोक सेवा का प्रदर्शन है, जिसका खामियाजा जनता को
भुगतना पड़ता है, और फिर आम जनता को लोक सेवकों पर एक विश्वास होता है जिसे ठेंस
पहुँचती है,
टी आई , नीरज वर्मा मामला क्र 4
यह वही थाना प्रभारी है जिसके खिलाफ चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट के द्वारा एफ आई
आर दर्ज करने के आदेश दिए गए थे, यह वही थाना प्रभारी है, जिसके खिलाफ फर्जी
मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर कायम मामले फर्जी कार्यवाही का संकलन करना और संदेह के आधार पर आरोपी के साथ अमानवीय बर्ताव करना,
चोटिल करना का अपराध सिद्ध पाया गया था, जिस पर न्यायाधीश श्रीमान आनंद जंभुलकर के द्वारा तत्कालीन थाना
प्रभारी नीरज वर्मा और विक्टोरिया हॉस्पिटल के चिकित्सक के द्वारा बनाई गई फर्जी मेडिकल
रिपोर्ट , के आधार पर न्यायाधीश महोदय के द्वारा प्रकरण दर्ज करने के आदेश दिए गए
थे, जिसका पालन इनके द्वारा नहीं किया गया था, जिससे और
यह स्पष्ट होता है कि थाना प्रभारी दरोगा महोदय जज साहब से भी बहुत बड़े होते हैं,
फर्जी प्रकरण दर्ज करना इनके हाथ में है, और प्रकरण दर्ज करना या नहीं करना वह भी
इनके हाथ में है, आम आदमी के लिए यह जानकारी बहुत महत्वपूर्ण है इसीलिए पुलिस पर
से किसी को विश्वास नहीं होता,
टी आई , नीरज
वर्मा मामला क्र 5
सूचना अधिकार का अधिनियम तो उनके थाने में लागू
ही नहीं होता है, ऐसा की इनके समक्ष
प्रस्तुत की गई शिकायत से संबंधित की गई कार्यवाही के दस्तावेजों की अपेक्षा अगर
इनसे अधिनियम के अनुसार की जाए, तो उसका जवाब नहीं देते हैं, अगर प्रथम अपील कर दी
जाए तो आंशिक निराकरण करते हैं, लिहाजा इनके खिलाफ सूचना आयुक्त कार्यालय में
लंबित पड़ी है, जिस पर ₹25000 की पेनाल्टी भरने के
अलावा कोई निष्कर्ष नहीं निकल सकता, परंतु यह अपने आप में एक प्रमाण छोड़कर जाता
है, कि कोई भी शिकायत करता है थाने में शिकायत प्रस्तुत कर दे, भले वह प्रमाण के
साथ हो, अगर शिकायत दर्ज नहीं करनी है, तो इनका कोई कुछ uखाड़ नहीं सकता और अगर
इन्हें शिकायतकर्ता को निपटाना है, तो शिकायतकर्ता भी इनका कुछ नहीं कर सकता, यह अधिकार
केवल जबलपुर पुलिस के पास है ,, ऐसी पुलिस पाकिस्तान की भी नहीं है
टी आई , नीरज वर्मा मामला
क्र 6
सिन्धी धर्मशाला
में 16 जुलाई 2018 को भाजपा विधायक के इशारे पर सामाजिक लोगों के साथ मारपीट की गई
थी, जिसमें समाज के लोग f.i.r. करने थाने पहुंचे थे, और इसी थाना प्रभारी नीरज
वर्मा की संदिग्ध भूमिका के चलते f.i.r. नहीं लिखी गई और
कंप्रोमाइज करने का दबाव बनाया गया, लिहाजा ऐसी स्थितियों का निर्माण किया गया कि
अगर फरियादी मार खाने के बाद एफ आई आर दर्ज कराने के विषय पर पीछे नहीं हटता है , तो
उसके ऊपर गैर जमानती अपराध f.i.r. उसके ऊपर एक लांच कर दी जाएगी, जिससे डरते हुए
समाज के लोगों ने पुलिस विभाग से निष्पक्ष न्याय की उम्मीद छोड़ दी और वापस आ गए, इस पूरे मामले में भाजपा के विधायक की पूरी
भूमिका का पर्दाफाश पूरे मीडिया ने किया था, पर अफसोस इस बात का रहा कि थाने खोले तो जरूर गए
हैं परंतु अपराधियों से सांठ-गांठ रखने, नेताओ के इशारो पर डांस करने, के लिए,
ऐसे मामले इस तरह की संभावनो को प्रबल करते है, जिससे यह संभावित तौर पर प्रतीत होता है, की यह सब अवैध अनुतोष अर्जित करने के प्रयास है ,
सदर monte-carlo शोरूम का पुलिस विवाद और 23 लोगो के निलंबन, जिनमे थाना गोहल पुर और लार्जडगंज पुलिस के सम्बबन्लध सटोरियों से, डायरी में खुले थे, पूरे शहर की जनता इस सदी में नही भूल पायेगी यह लोक सेवा
ऐसे मामले इस तरह की संभावनो को प्रबल करते है, जिससे यह संभावित तौर पर प्रतीत होता है, की यह सब अवैध अनुतोष अर्जित करने के प्रयास है ,
सदर monte-carlo शोरूम का पुलिस विवाद और 23 लोगो के निलंबन, जिनमे थाना गोहल पुर और लार्जडगंज पुलिस के सम्बबन्लध सटोरियों से, डायरी में खुले थे, पूरे शहर की जनता इस सदी में नही भूल पायेगी यह लोक सेवा
दिसंबर 2019 की क्लोजिंग में कितने मामले कितनो पर मामले पेंडिंग वाले लाद दिए गए,
कईयों का भविष्य खराबकर कर दिया गया होयेगा, अभी इस मामले की जांच होना शेष है, और इसके लिए
कोई विशेष थाना नहीं होता, कोई विशेष जांच अधिकारी नहीं होता, कोई विशेष न्यायाधीश
नियुक्त नहीं होता, यह अपने आप में कानून व्यवस्था में एक बहुत बड़ी खामी है,
जिसकी कीमत केवल और केवल आम आदमी चुकाता है,
इन प्रकरणों के अलावा भी कई ऐसे प्रकरण हैं, जिन पर जांच पुलिस विभाग में नीरज
वर्मा के खिलाफ जारी है, जो शेयर नही किये जाते, प्रेस कांफेर्रेंस में नही बताये
जाते, प्रेस कांफेर्रेंस में सिर्फ जनता के बीच का चोर-आरोपी पकड़ कर दिखाया जाता है, नीरज वर्मा के खिलाफ शिकायत मुख्यालय तक की गयी है, पर फिर भी वरिष्ठ
अधिकारियों के द्वारा नीरज वर्मा के खिलाफ निष्पक्ष एवं प्रभावती कार्यवाही नहीं
की जा रही है, इन पर PCA 1988- AMMENDMENT 2018 लागू ही नही होता, सिविल सर्विसेज वर्गीकरण अधिनियम, नही होता लागू, फर्जी जांच रिपोर्ट बनाने के अपराध में इन पर IPC 420,467,468,471 लागू नही होती, फर्जी आधारों पर तो आम आदमी खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिए जाते हैं वो फ़रिश्ते की तरह सूचना देने वाले मुखबिर पर भरोसा कर के,
परंतु नीरज वर्मा के खिलाफ अपराध घटित पाए जाने के सबूत भी मिल जाने के उपरांत
उसका कोई बाल बांका नहीं कर सकता, क्योंकि यही हमारे देश के सिस्टम की एक मिसाल है,
आप केवल एक बार नौकरी हासिल कर लीजिए, उसके बाद आप के खिलाफ कभी भी प्रशासनिक
कार्यवाही नहीं हो सकती, होगा तो ज्यादा से ज्यादा ट्रांसफर या फिर 1 साल का
इंक्रीमेंट डाउन, इस देश में कानून है, इसका पालन करना है, केवल आम आदमी को और उसका भरपूर उपयोग करने के लिए आप
थाना प्रभारी बन जाइए, और हां Human Rights Act नाम का कोई अधिनियम प्रभावशील नही है इस देश में ..
ऐसी कार्यवाहिया और कांड, न्यायाधीशो के लिए बड़ी चुनौती है, जिस क्रम में, न्याय के अधिकारी आवेदक को समय पर न्याय ही मिल पाता, क्युकी न्यायाधीश महोदय का कीमती समय , पुलिस के द्वारा दर्ज किये जाने वाले, संदेहास्पद मामले, कूटरचित मामले, एवं संभावनाओ के आधार पर दर्ज किये जाने वाले अनुमानित मामलो की समीक्षा में कीमती समय निकल जाता है, और प्रकरण सालो चलता रहता है, क्युकी मामलो में फर्जी गवाहों की लंबित सूची जोड़ दी जाती है, अब दौर शुरू होता है सम्मन का, i.e. Justice delay -Justice Denied
ऐसी कार्यवाहिया और कांड, न्यायाधीशो के लिए बड़ी चुनौती है, जिस क्रम में, न्याय के अधिकारी आवेदक को समय पर न्याय ही मिल पाता, क्युकी न्यायाधीश महोदय का कीमती समय , पुलिस के द्वारा दर्ज किये जाने वाले, संदेहास्पद मामले, कूटरचित मामले, एवं संभावनाओ के आधार पर दर्ज किये जाने वाले अनुमानित मामलो की समीक्षा में कीमती समय निकल जाता है, और प्रकरण सालो चलता रहता है, क्युकी मामलो में फर्जी गवाहों की लंबित सूची जोड़ दी जाती है, अब दौर शुरू होता है सम्मन का, i.e. Justice delay -Justice Denied