बागी विधायक चले भोपाल की ओर, क्या बागियों का लक्ष्य शुरू से ही सिंधिया सेवा था, क्या यह जनप्रतिनिधि नहीं थे, इन्हें जनप्रतिनिधि बनाया गया था, यह एक सिंधिया प्रोजेक्ट था, ? - News Vision India

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बागी विधायक चले भोपाल की ओर, क्या बागियों का लक्ष्य शुरू से ही सिंधिया सेवा था, क्या यह जनप्रतिनिधि नहीं थे, इन्हें जनप्रतिनिधि बनाया गया था, यह एक सिंधिया प्रोजेक्ट था, ?

कल होगा विधान सभा में 2020

बागी विधायक चले भोपाल की ओर, क्या बागियों का लक्ष्य शुरू से ही सिंधिया सेवा थाक्या यह जनप्रतिनिधि नहीं थे, इन्हें जनप्रतिनिधि बनाया गया था, यह एक सिंधिया प्रोजेक्ट था, ?

 मध्य प्रदेश में राजनीतिक घमासान के अंतर्गत 22 बागी विधायक जो अब भोपाल की ओर रवाना हो चुके हैं, सोशल मीडिया में इनका वायरल हो रहा वीडियो जिसमें इनके द्वारा बताया जा रहा है कि अपनी  स्वेच्छा से हम सभी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में अपना इस्तीफा पेश किया है, परंतु इसके पीछे की हकीकत बहुत  रहस्यमई है,

सफलतापूर्वक चल रही सरकार के समर्थन में जिन विधायकों ने पहले समर्थन पत्र प्रस्तुत किए थे और कमलनाथ सरकार में अपना कार्यकाल आरंभ किया था, उस समय के पहले कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं के रूप में और अपनी विधानसभा क्षेत्र से जनप्रतिनिधि के रूप में जिन लोगों ने कांग्रेस के बैनर तले चुनाव लड़ा और जीता आज इन्हीं लोगों ने जनता के हित को ढाल की तरह इस्तेमाल करते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थन में विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष इस्तीफे की पेशकश की है, सबके  इस्तीफे प्रस्तुत होने से सरकार अल्पमत में आ जाती हैं, और मध्यावधि चुनाव की संभावनाओं को उत्पन्न करती है,

अगर मध्यावधि चुनाव होते हैं तो क्या इन सभी विधायकों को भाजपा अपनी ओर से टिकट देगी या किसी निगम मंडल या विभाग  प्रभार में इन्हें पदस्थापना देगी?

फिलहाल इन सब के इस्तीफे विधानसभा अध्यक्ष के पास लंबित थे, जिन्हें रिजेक्ट किया गया है, परंतु इस परीक्षण  के पीछे शिवराज सिंह चौहान सहित विपक्षी दलों ने गवर्नर महोदय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत करते हुए 16 मार्च को सबसे पहले बहुमत सिद्ध करने के लिए वर्तमान सरकार को चुनौती दी है, जिसे स्वीकार करते हुए गवर्नर महोदय ने 16 मार्च का समय निर्धारित किया गया है, उनके अभिभाषण के बाद सबसे पहले फ्लोर टेस्ट किया जाएगा, जिसके आधार पर सरकार गिरने के पूरी संभावना है, और मध्यावधि चुनाव की ओर इसकी घोषणा भी हो सकती है,

सिंधिया जो खुद लोक सभा चुनाव हार चुके है, जनता अस्वीकार कर चुकी है, उन्हें बीजेपी केवल एक राजनैतिक वास्तु के रूप में उपयोग में ले रही है, क्या सिंधिया का लक्ष्य राजनीती में बने रहना है, चाहे congress हो या भाजपा 


गवर्नर कोई प्रोफेशनल राजनीतिक व्यक्ति नहीं होताना ही कोई योग्यता के आधार पर पदस्थ व्यक्ति होता, विषय विशेषज्ञ के सलाह के अनुसार कार्य संपादित करता है, ऐसी स्थिति में उनके द्वारा लिए गए निर्णय ऊपर आ संतुष्टि होने पर एक दल कोर्ट भी जा सकता है, प परंतु इस विषय का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि अनावश्यक न्यायालय प्रखंडों में जापान ना हो इससे प्रदेश में विकास की गति प्रशासनिक गति को विराम लगता है जो जनहित के और व्यापक लोकहित के विरुद्ध कार्य है, गवर्नर को सर्वदा निष्पक्ष होना चाहिए , मामूली मामला जबरन गले की फांस बन रह है, 

 कमलनाथ सरकार को क्या करना चाहिए था इस विषय में
 जब बागी विधायकों ने अपने इस्तीफे प्रस्तुत किए और तत्काल प्रभाव से विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा इन्हें नामंजूर किया गया , अगर प्रत्येक विधायक को नोटिस जारी करते हुए उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए इस्तीफे की स्पष्टीकरण हेतु उन्हें पत्र लिखा गया होता और स्वयं उपस्थित होकर कथन देने के लिए नोटिस जारी किया होता,  जिन्हें विभिन्न तारीखों पर 22 लोगों को अपने पक्ष समर्थन में एवं इस्तीफे के संबंध में स्पष्टीकरण हेतु विधानसभा अध्यक्ष की ओर से लामबंद किया गया होता तो, सरकार को लगभग 1 महीने का समय और मिल जाता और फ्लोर  टेस्ट के नतीजे कमलनाथ सरकार के पक्ष में परिवर्तित हो सकते थे, परंतु अच्छे सलाहकारों की कमी के कारण जूझ रही है सरकार 16 मार्च को क्या करेगी, यह अपने आप में एक परिस्थिति कालीन रहस्य है जो कल विधानसभा में  देखने को मिलेगा, इस विषय में मीडिया कवरेज के आधार पर विपक्ष के पत्र पर गवर्नर के द्वारा जारी पत्र फिलहाल विपक्षी दलों के हितार्थ होते हुए, जानकारी की पुख्तीकरण की आवश्यकता को इन्द्राज करता है, एवं यह भी संभव है की विपक्ष के द्वारा मान गवर्नर को राजनैतिक लाभ हेतु गुमराह किये जाने हेतु संभावित पत्र लिखा गया हो, लोकतान्त्रिक दृष्टिकोण से फ़िलहाल इसे बागियों के स्टेटमेंट नोट होने तक निर्धारित नही किया जा सकता,ना ही इस्तीफे पूर्ण माने जा सकेंगे, 

म. प्र. सरकार सम्हल सकती है, जमीनी अनुभवी निर्णायको के द्वारा यह संभव है, पर वहां तक कैसे पहुंचे मुखिया कमलनाथ